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Showing posts from October, 2020

राजस्थान की भौगोलिक स्थिति | Rajasthan ka bhogolik swaroop

           क्षेत्रफल की दृष्टि से पंजीकृत भारत का सबसे बड़ा राज्य है।  राजस्थान में  अरावली भूमि के पश्चिम में शुष्क और प्राकृतिक शुष्क मैदान पाए जाते हैं।  अरावली पर्वत श्रंखला विश्व की प्राचीनतम पर्वत श्रृंखलाएँ हैं।  अरावली पर्वत श्रंखला की मुख्य जलप्रपात है।  पहाड़ के धरातलीय स्वरुप में पर्वत, पातर, मैदान और मरुस्थल पाए जाते हैं।  भोजोलिक दृष्टि से पाँच भागों में बांटा गया है: - 1.पश्चिमी मरुस्थल प्रदेश  2. शुष्क प्रदेश  3. अरावली प्रदेश 4. पूर्वी मैदानी प्रदेश  5. दक्षिणी-पूर्वी पठारी क्षेत्र। ये भी पढ़ें - राजस्थान के(अरावली) लोक देवता 1.पश्चिमी मरुस्थल प्रदेश: - इस प्रदेश को तीन समानांतर भागों में बांटा जा सकता है जो पश्चिम से पूर्व की ओर हुआ है।] यहां रेत (बालू) के टीले पाए जाते हैं, इनको स्थानीय भाषा में "धोरे" कहा जाता है।  ।  इस क्षेत्र में बीकानेर, बाड़मेर, जैसलमेर, व जोधपुर जिले में स्थित है।  इंदिरा गांधी नहर परियोजना से यहां की परिस्थितियों में बदलाव आया है। 2. शुष्क शुष्क प्रदेश: - ...

deepak kavita दीपक कविता

कविता    मैं एक नन्हा - सा दीपक हूं । भव्य - दिवाकर का यमक हू , कादम्बरी राहों की चमक हूं, रजनी के साम्राज्य में व्यापक हूं । तूफानों ने की कोशिशें मुझे बुझाने की, हुई बहुत चेष्टा मेरा अस्तित्व मिटाने की । फिर भी हार नहीं मानूंगा मैं नीरव, डटा रहूंगा जब तक है मुझमें विभव । नहीं रुकूंगा क्षणिक ,असंभव है पराभव, आंधियां करें चाहे जितना तांडव । कर्त्तव्य विमुख नहीं होऊंगा तनिक, मेरी प्रभा पर दृढ़ आस्तिक हैं पथिक। इस तिमिर सागर में नहीं हूं एकाकी, मेरे साथ जल रहे हैं तेल और बाती  ।                                   प्रांगण जगमग करने को हूं उद्यत, निशा का भय नहीं मुझको मैं हूं उद्योत ।।              Written by 🖋 Neelam शब्दार्थ :-भव्य -बड़ा ,दिवाकर -सूर्य,यमक-निचोड़ ,कादम्बरी-रात,  रजनी-रात , व्यापक- विस्तृत , अस्तित्व- जीवन , नीरव - शांत , विभव - क्षमता , पराभव - हारना ,तांडव - ज्यादती ।विमुख - हटना । प्रभा -चमक । दृढ़-स्थायी । आस्तिक- विश्वास करन...

सुप्रभात कविता suprabhat kavita

सुप्रभात  कविता suprabhat kavita  सुप्रभात  कविता suprabhat kavita    सुप्रभात ! कविता  सूर्य लालिमा लेकर रश्मि रथ पर चढ़कर ,                       तम की प्राचीर को चीर धरा अक्ष पटल पर ,  किरण कलश रहा बिखेर रवि - धरन हों रहीं स्पर्श पिघल रहा हिमालय का शीर्ष सुप्रभात !    बहता निर्झर कल-कल  स्वच्छ उज्जवल धवल   पूर्णं तरण-ताल-सागर जल कुमुदिनी पर  गुंजन करते भ्रमर  जैसे गा रहे मंगल गान अहो ! कर अभिनंदन सुप्रभात !  कमल दल पत्र हैं तर ओस के मोती रहे बिखर  कलरव करते खग - चर  आकाश में रहे ये विचर चले द्विज जीवन सजाने तिनका - तिनका लाने रहते रत निलय बनाने अपना गंतव्य खोजने  चले पथिक अंजाने सुप्रभात ! Written by -  Neelam  शब्दार्थ : - लालिमा - प्रफुल्लता ,रश्मि - : किरण ,तम :- अंधेरा , प्राचीर- दीवार,  धरा - पृथ्वी ।अक्ष - धुरी, आधार ।पटल :- आवरण । धरन - कडी़, किरण। स्पर्श - छूना । शीर्ष- सिरा ,ऊपर ।निर्झर - झरना । पूर्णं - लबालब भ...

कविता कविता

kavita kavita   ये कविता  विचारों की गहराई में डूब कर लिखी गई है हिंदी भाषा को सीखने और समझने में कविता  लेखन या पठन का  महत्वपूर्ण योगदान रहा है  कविता के माध्यम से कम शब्दों में अधिक विचारों को व्यक्त किया जा सकता है नये तद्भव तथा तद्गम शब्दों का ज्ञान मिलता है।  कविता कविता मेरे दिमाग में घूम रही है                शब्दों की वर्षा झूम रही है। दिमाग बोला लिख ले सही मुहुर्त है                तेरी कलम में स्याही बहुत है इस कविता को पढ़ने वाले                  इंसान के रूप में भूत हैं अच्छा इंसान बनने की कोशिश                    में हम बुरे बन जाते हैं  लेकिन क्या कभी बुरा बनने की कोशिश                                में अच्छा इंसान बन पाते हैं ? तभी मेरे पास से एक जनाजा गुजरा       ...

जीने की चाहत कविता

Jeene ki chahat kavita यह कविता हमें यह संदेश देती है कि पढ़ाई हमारे जीवन के लिए कितनी महत्वपूर्ण होती है किंतु आजकल के विद्यार्थी जीवन में कितनी कठिनाई आती है पढ़ाई करने में और कार्यपालिका विभाग मैं जो भ्रष्टाचार फैला हुआ है और और उसकी कार्यशैली पर व्यंग्य किया गया है । जीने कि चाहत है पढ़ाई ही बेरोजगारी कि राहत है पढ़ाई के लिए motivation हैं लेकिन problem तो distraction है सोचा था पढ़-लिखकर आगे बढ़ जाऊंगा Class top करके दिखलाऊंगा क्योंकि जीने कि चाहत है पढ़ाई ही बेरोजगारी की राहत है पता नहीं था कि एक दिन ऐसा आएगा जब पढ़ा लिखा भी नौकरी के लिए गिड़गिड़ाएगा अनपढ़ नेता भी अपनी धौंस जमाएगा चारो ओर भ्रष्टाचार फेलाएगा क्योंकि जीने कि चाहत है पढ़ाई ही बेरोजगारी कि राहत है पापा बोले इंजिनियर बनना है Sir बोले school का नाम ऊंचा करना है लेकिन किसी को नहीं ध्यान कि student‌ का क्या है ख्याल घिर गया चारों ओर से आगे बढ़ा अपने सपने तोड़ के जीतता गया नये गुण सिखता गया क्योंकि जीने कि चाहत है पढ़ाई ही बेरोजगारी कि राहत है न जाने नौकरी का नंबर आया कब Problem में आया तब अधिकारी रिश्वत मांगे जब उड़ी खबर...

अरावली की पुकार कविता

लगभग 70 करोड वर्ष पहले जन्मी विश्व की सबसे प्राचीन पर्वत मालाओं में से एक हैं यह पर्वत श्रेणियां आग्नेय चट्टानों के "आड़े वलय" से बनी हुई है "अड़ावल" कहा जाता है यह राजस्थानी भाषा का शब्द आदि काल में आदिवासियों के मुख से स सुना जाता था आर्यों के रहने के कारण अंग्रेजों इसे "आर्यन वैली "कहा करते थे जिस कारण से आज इन पर्वत श्रेणियों को "अरावली पर्वत" के नाम से जाना जाता है। भारत के पश्चिमी भाग में यह स्थित है अरावली पर्वत श्रृंखला है लगभग दक्षिण से उत्तर की ओर 692 किलोमीटर की लंबाई में फैली हुई है गुजरात से दिल्ली तक का विस्तार है राजस्थान विस्तार के मध्य में है सिरोही जिले के आबू पर्वत में स्थित गुरु शिखर की ऊंचाई लगभग 17 से 22 मीटर है यह इसकी सबसे ऊंची चोटी है ।यह पर्वत श्रेणियां सदैव हरी भरी रहती है दक्षिणी तथा मध्य क्षेत्र में सघन वन है। एक समय था जब इसके सघन वनों में अनेक पशु पक्षी रहते थे किंतु अब वह सारा सौंदर्य दिन प्रतिदिन गायब हो रहा है इसका कारण है वनों की अवैध कटाई तथा अवैध खनन । जिसके कारण यहां का सौंदर्य नष्ट हो रहा है मनुष्य ने अपने ...

दूरियां कविता

duriyan- kavita काम वही करिए जो आपका मन करता है क्योंकि इंसान केवल अपनी मौत से डरता है कहने और सुनने में फर्क होता है बिना मन से किया काम नर्क होता है पाबंदियां सब पर होती हैं लेकिन   वह भी टूट जाती है जब किसी की चाह होती है किसी ने सच ही कहा है कि दूर के संबंध मजबूत होते हैं लेकिन हमें पता चला कि वे लोग बड़े बदनसीब होते हैं अपनों के करीब होकर भी दूर रहते हैं   पता नहीं कब मुलाकात होगी अभी तो केवल बात होगी। द्वारा लिखित -सुपर सी. एम.

दूरदर्शन कविता

                    दूरदर्शन kvita न जाने कब से सोच रहा था मेरा मन पहले सबके लिए कौतूहल था दूरदर्शन प्रारंभ में शैक्षिक कार्यक्रमों से शुरु होकर  मनोरंजन का साधन बना आगे चलकर  वहीं थम जाता था समय का पल क्षण  जब आता था महाभारत और रामायण बुझ जाती थी इनसे भक्ति - रस तृष्णा   देखकर जय हनुमान तथा श्री कृष्णा गजब था जादू और तिलिस्म का जाल  जब देखते चंद्रकांताऔर विक्रम बेताल सुरभि लाती कला और संस्कृति का ज्ञान‍ भारत एक खोज में था इतिहास का गान जाग उठता था हर नारी का स्वाभिमान  जब देखते थे सब आरोहण और उड़ान  बच्चे जवान हो या कोई उम्र हो साठा  देखते थे  सब मिलकर द ग्रेट मराठा   प्यारा मोगली था सबका मनपसंद  सब बच्चे देखकर हो  जात थेे दंग इस देश में था जब पुरुषों का वर्चस्व  करती थी वाचन  समाचार सर्वस्व । समाज की रूढ़ियों को छोड़ न घूंघट पर्दा अपने देश में होता सम्मान उनका सर्वदा सलमा सुल्तान नीलम शर्मा मंजरी जोशी अविनाश कौर सरला माहेश्वरी थीं विदुषी सब सुनते ध्यान लगाकर निष...

आज का बचपन कविता

            कविता       आज का बचपन  नहीं रहे अब वो घर आंगन  जिनमें बसता था अपनापन लाड़ -प्यार बरसाते अपने जन उनको खोज रहा आज का बचपन ।  रहते थे आबाद गली - मोहल्ले  सुबह- शाम होते थे हल्ले - गुल्ले  कंचे , गुल्ली-डंडा,हॉकी - कबड्डी  सतोलिया , लुका - छिपी गुड्डे - गुड्डी  और भी होते थे खेल ऐसे ही पचपन इनसे वंचित हो गया है आज का बचपन कहां गए ? हंसते चेहरे सूरत भोली  बनाते थे कागज की नाव और रंगोली पड़ जाते थे झूले जब आता सावन  झूला - झूलते,  गाते मनभावन गूंजती थी किलकारियां वन -उपवन ये सब भूल रहा है आज का बचपन   दाल बाटी चूरमा इडली सांभर डोसा  रसगुल्ला मिठाई और चटनी समोसा   खाये जाते और भी कई भोग थे छप्पन क्यों मुख मोड़ रहा है आज का बचपन । Poem writer- Neelam

प्रदूषण कविता

प्रदूषण कविता विश्व में अनेकों ऐसी समस्याएं हैं या अपने भारत देश में भी हैं जिनका समाधान या तो निकल नहीं पाता है या उन्हें जानबूझकर अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए अनदेखा कर दिया जाता है इन्हीं समस्याओं को देखकर मेरे मन में जो शब्द मंथन हुए हैं उन्होंने कविता का रूप ले लिया है। संपूर्ण विश्व मे  समस्या है भीषण  वो है चारों तरफ फैलता प्रदूषण जगह-जगह लगा है कचरे का ढेर घूमते वहां आवारा पशु लगाते टेर  कूड़ा - करकट से फैलती महामारी साफ - सफाई किसकी है जिम्मेदारी ? कल - कारखानों से निकलने वाले जहरीले रसायन युक्त पानी के नाले ये जाकर मिलते नदिया - सागर में इनके जल को दूषित कर देते पलभर में नदिया - नहर हैं इस देश के भूषण न जाने कब मिटेगा जल प्रदूषण ? सड़कों पर वाहनों का लगा है जाम विषाक्त धुआं निकलना है इनका काम कारखानों से निकलते हैं धूम्र के बादल  कायदे- कानून के नहीं हैं कायल क्या तुमने सुना है वृक्षों का रुदन ? जब निरंतर कटते हैं वन - उपवन धीरे-धीरे खो रहा अपनी सांसें जन   इसका कारण है बढ़ता वायु प्रदूषण मंदिर, मस्जिद हो या चुनावी तंत्र  इन सबमें बजते हैं ध्वन...

निर्भया कविता

                      कविता                 निर्भया  कुछ पुरुषों ने आज फिर ऐसा कार्य किया है , धरती की मानवता को शर्मसार किया है घर की बहन बेटी के लिए है रक्षक  बाहर जाते ही बन जाते हैैं भक्षक गलत उपयोग किया अपने रोष का क्या अपराध था उस निर्दोष का ? क्यों दिया तुमने उसको  कष्ट क्यों हो गई बुद्धि तुम्हारी भ्रष्ट सिर्फ इसलिए कि वो बेटी पराई थी  प्रताड़ित करते लज्जा भी न आई थी मेरा एक प्रश्न है आज के समाज से क्या बेटियां नहीं जी सकेंगी नाज से  हर समय भय के साये में जिया है इस देश में रहती कितनी निर्भया है पुरुषों ने संस्कारों को बलि चढ़ाया है  समाज यहां कुछ नहीं कर पाया है क्योंकि ये पुरुष प्रधान समाज है फिर से रो रही निर्भया आज है  माना कि न्याय उसे मिलेगा कल  लेकिन मेरा प्रश्न यही है प्रतिपल  क्या उसे मिल पायेगा फिर से जीवन  नष्ट हो चुका है जो उसका तन छन ? Written by 👉 Neelam

कविता सांप और आदमी | Hindi poem|Sanp our admi kavita|

        Kavita sanp or admi image     हिन्दी कविता       " सांप और आदमी "          एक आदमी बड़ा ही भला था  एक दिन जंगल की ओर चला था राह में उसनेे जो कुछ देखा  वह सचमुच था या कोई धोखा सांप दबा पड़ा था पत्थर के नीचे  बेसुध निश्चल  बेजान आंखें मीचे  आदमी को सांप पर आई दया  उसने उस पर से पत्थर हटा दिया एकाएक सांप जैसे नींद हो जागा  आदमी की तरफ सरपट भागा  वह अपना फन उठाकर बोला अरे आदमी । तू कितना भोला अब तुझे भेदेंगे मेरे ये विषदंत  तेरे जीवन का कर दूंगा अंत  ये सुनकर आदमी रह गया दंग  सारी मोह माया हो गई भंग  आदमी को आया बहुत क्रोध  उसे हो गया सांप के फरेब का बोध आदमी ने उठाया वही पत्थर  रख दिया फरेबी सांप के ऊपर  अपनी मंजिल की राह चला  सांप कभी किसी के होते हैं भला ?                           Written by 👉 Neelam

मतदान कविता | Poem on Voting | Kavita Matdan

  कविता   आज ग्राम पंचायत चुनाव संपन्न हुआ है, जिसे देखकर मेरा मन खिन्न हुआ है। राजनीति में देखो आज लोकतंत्र झुका है   एक-एक मत हजार- हजार में बिका है। अरे!  ओ मतदाता तुझे धिक्कार है, मतदान तो तेरा अपना अधिकार है। राजनीति की यही गंदी हकीकत है, मतदाता ने अपनी लगाई कीमत है। आज आपने अपना अधिकार बेचा है, कल के बारे में आपने क्या सोचा है? इन पैसों से गरीबी मिटेगी ’  विकास की गाड़ी आगे बढ़ेगी?  पंचायत की आई नई सरकार है,  रोजगारों की अब क्यों दरकार है। मदिरा - नोट बांटकर बने विजेता किसी काम के  नहीं ऐसे नेता अब ये अपनी मनमानी कर पाएंगे सब बेबस होकर यानी डर जाएंगे करोडों रूपयों को चूना लगाएंगे अपने स्वार्थों को यूं ना भुलाएंगे  अधिकारों का दुरुपयोग कर मत  बड़ा ही अनमोल है ये तेरा मत। 👉 नीलम द्वारा लिखित