सप्रसंग व्याख्या तथा विशेष कैसे लिखें | Saprasang Vyakhya tatha Vishesh kese likhen

 How to write sandarbh prasang in Hindi poems?
संदर्भ तथा प्रसंग - 

    1. संदर्भ का अर्थ होता है किसी काव्य या रचना के गद्य या पद्य भाग की बनावट कैसी होती है संदर्भ में इसका उल्लेख किया जाता है।

     2. वह प्रसंग, विषय आदि का उल्लेख करता है, जैसे कि किसी एक गद्य या पद्य भाग की व्याख्या करने पर करने से पहले उसको किस पाठ से लिया गया है, उसके लेखक या कवि कौन हैं, का उल्लेख किया जाता है। 
    3. वह परिस्थिति जिसमें कोई घटना घटी हो या वह किस घटना से संबंधित है का विवरण दिया गया है।
    4. किसी पुस्तक या ग्रंथ में उल्लिखित वे बातें जिनका उपयोग जानकारी बढ़ाने के लिए किया गया है, या फिर वह गद्य / पद्य भाग जिस पर किसी लेखक या कवि द्वारा रचित रचना से लिया गया हो उसका उल्लेख किया जाता है।
प्रसंग - 
1.कथन - कहा हुआ सार्थक वाक्य, घटित होने वाली या प्रस्तुत अवस्था, स्थिति, चीजों का पारस्परिक संबंध।   
2. विषय - 
अवसर, घटना, मौका आदि का वर्णन करना। 
3. संभावित क्षमता -
उत्तम, उत्कृष्ट, लगाव, रूढ़िवादि संबंध का परिचय देना
4. विषय का तारतम्य - 
किसी विचार के अनुसार लगाए जाने वाला क्रम या उनके बीच का सामंजस्य निर्दिष्ट करना।
 5. प्रकरण - 
किसी गद्य या पद्य भाग की व्याख्या करने से पहले उसके प्रकरण या प्रसंग का उल्लेख किया जाना चाहिए।
सूरदास
जैसे - 
बुझत श्याम कौन तू गोरी।
कहाँ रहती काकी है बेटी, देखा नहीं कबहु ब्रज-खोरी ।।
काहे को हम ब्रज-तन आवतीं, खेलते रहो तुमनी पोरी।
सुना रास्ता आता श्रवन नंद ढाँस, करत करत माखन दधि चोरी ।।
तुहरो ने चोरी हम लकेन, खेलन चलो संग मिला जोरी।
सूरदास प्रभु रसिक सिरोमणि, बातनि भुरई राधिका भोरी ।।
संदर्भ और प्रसंग - 
प्रस्तुत 'पद' / 'पद का' महाकवि सूरदास द्वारा रचित 'लीला-विलास' से संबंधित है / उद्धृत है / लिया गया है। प्रस्तावित पद कृष्ण और राधिका के प्रथम मिलन का वर्णन है। इस पद में कृष्ण की चतुराई से और परिचय की दीवार समाप्त होती है। कृष्ण की कमियों को बड़ी ही चतुराई से राधिका द्वारा प्रस्तुत की जाती है। अंतिम अपने साथ खेलने के लिए कृष्ण राधिका को आमंत्रित करते हैं। राधा और कृष्ण के मध्य सहभागिता का सरस वर्णन हुआ है।
व्याख्या - व्याख्या किसे कहते हैं ?
किसी गद्य या पद्य भाग की सरल भाषा में विस्तार पूर्वक विवेचना व्याख्या कहलाती है। अर्थात कोई भी गद्य-पद्य भाग संक्षेप एवं कठिन शब्दों में लिखा जाता है उसको सरल भाषा में विस्तार पूर्वक समझाना ही व्याख्या कहलाती है। कई बार गद्य अथवा पद्य रूप में लिखे हुए साहित्य को सामान्य रूप से समझना कठिन हो जाता है। किसी भी भाषा के साहित्य को सरलता से समझने के लिए साहित्य को आसान एवं विस्तृत भाषा में उल्लेख किया जाना ही व्याख्या कहलाता है।
 राधिका को पहली बार देखकर कृष्ण उनसे पूछते हैं कि क्या गोरी तुम कौन हो? और तुम कहाँ रहते हो? तुम किसकी बेटी हो अर्थात् तुम्हारे पिता कौन हैं? आपको कभी बृज की गलियों में नहीं देखा गया है। तब राधिका ने कृष्ण द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर दिया कि भला ब्रज में आने का मेरा क्या निर्देश है और बिना उद्देश्य के मैं नहीं आती।
 मैं तो अपनी दहलीज पर ही खेलती हूं।
राधिका जी बातचीत को आगे बढ़ाते हुए कहतीं हैं कि मैं तुम्हारे बारे में सुनती रहती हूं, कि नंद का लड़का दही और माखन की चोरी करता-फिरता है। इस पर कृष्ण ने चतुराई से कहा की मैंने तुम्हारा क्या चुराया है जो मुझ पर चोरी का आरोप लगा रहे हो? फिर कृष्ण ने कहा कि "चलो मिल जुलकर खेलते हैं।"
'सूरदास' जी कहते हैं कि प्रभु श्री कृष्ण जिनके हृदय में हृदय सौंदर्य, प्रेम, भक्ति, कला आदि के प्रति अनुराग है, (रसिक शिरोमणि) ने भोली भाली राधिका को अपनी चतुरतापूर्ण बातों से भुला दिया और अपने साथ खेलने के लिए राधिका को मनाया। ।
 विशेष - किसी में गद्य / पद्य भाग की व्याख्या करने के बाद विशेष लिखना आवश्यक होता है। विशेष का अर्थ होता है गद्य- पद्य में विद्यमान विशेष बातें या रस छंद, अलंकार, भाषा शैली मुख्य भाव शब्द-शक्ति, विशेषण आदि का उल्लेख विशेष में किया जाता है।
जैसे - 
1- भाषा - प्रस्तुत पद में सुरदास जी ने बृज भाषा का प्रयोग किया है। 
२। पद की गैयता और माधुर्य का निर्वाह हुआ है।
३। अलंकार - आक्षेप और अनुप्रास अलंकार का बड़ा ही सौंदर्य से प्रयोग हुआ है। 
4. कृष्ण और राधा के किशोरावस्था के स्वभाव और सरस सहभागिता का 'सूरदास' जी ने बड़ा ही सरसता से किया है। 
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