Subhadra Kumari Chauhan 1904 -1948 | सुभद्रा कुमारी चौहान-कवियत्री का जीवन परिचय भाषा शैली | Subhadra Kumari Chauhan poems
सुभद्रा कुमारी चौहान का जीवन परिचय -
सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म नाग पंचमी के दिन 16 अगस्त 1904 को इलाहाबाद के उत्तर प्रदेश के निहालपुर गांव में हुआ था । ठाकुर रामनाथ सिंह इनके पिताजी का नाम था।
सुभद्रा कुमारी चौहान के तीन बहन और दो भाई थे।
खंडवा के ठाकुर लक्ष्मण सिंह के साथ 1919 में इनका विवाह हुआ था।
क्रॉस्थवेट गर्ल्स कॉलेज इलाहाबाद में इनकी उच्च शिक्षा पूर्ण हुई थी।
सुभद्रा कुमारी चौहान की अमर कविता झांसी की रानी के कारण इनको प्रसिद्धि मिली ।
गांधीजी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली प्रथम महिला थी सुभद्रा कुमारी चौहान और वे दो बार जेल भी गई।
मिला तेज से तेज नामक पुस्तक में इनकी पुत्री सुधा चौहान ने इनकी जीवनी लिखी है।
40 वर्ष की अवस्था में 15 फरवरी 1948 को एक कार दुर्घटना में इनका आकस्मिक निधन हुआ था।
सुभद्रा कुमारी चौहान जी का साहित्य ओज एवं शौर्य के गुणों से भरा पड़ा है। इनके साहित्य में वीर रस की प्रधानता है ।सुभद्रा जी ने जो कुछ भी लिखा वह अविस्मरणीय एवं अद्वितीय है ।इन्होंने अपनी वीरता एवं ओजस्विता पूर्ण काव्य से अनेकों भारतीय युवक व युवतियों को राष्ट्रीय आंदोलनों में सक्रिय होने व देश के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने के लिए प्रेरित किया।
सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित "झांसी की रानी", "वीरों का कैसा हो बसंत" जन प्रेरणा के स्रोत से युक्त अमर कविताएं है जिन्हें पढ़कर तत्काल ही हृदय में ओजस्विता के भाव संचालित होने लगते हैं। सुभद्रा जी के द्वारा रचित शौर्य और आत्म बलिदान के गुणों से युक्त रचनाएं हिंदी साहित्य की अमूल्य उपलब्धि है।उन्होंने "राष्ट्रप्रेम" की भावनाओं के अतिरिक्त "वात्सल्य" एवं "शृंगारिक" भाव की रचना की थी।
सुभद्रा कुमारी चौहान जी को "मुकुल" काव्य संग्रह पर "सेकरिया" पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
सुभद्रा कुमारी चौहान की भाषा शैली /सुभद्रा कुमारी चौहान का कला पक्ष -
तत्सम शब्द प्रधान सरल एवं सुबोध भाषा का प्रयोग सुभद्रा जी ने किया है। प्रसाद व माधुर्य गुणों का भली-भांति प्रयोग इनकी रचनाओं में देखने को मिलता है।
सुभद्रा कुमारी चौहान जी के काव्य में लक्षणा एवं व्यंजना शब्द शक्तियां कविता के अर्थ को गहराई एवं व्यापकता प्रदान करती हैं ।
शैली - सुभद्रा जी ने अपने काव्य में मुक्तक शैली का प्रयोग किया है। वीर काव्य की रचनाओं में वीर रस भोजपुर शैली का प्रयोग देखते ही बनता है। उनकी शैली सरल एवं सुबोध है।
अलंकार - इनके काव्य में अलंकारों का प्रयोग काव्य के सौंदर्य को और अधिक बढ़ा देता है।
सुभद्रा कुमारी चौहान जी का हिंदी साहित्य में स्थान/ सुभद्रा कुमारी चौहान की रचनाओं का भाव पक्ष -
सुभद्रा जी की कविताओं ने इनको सच्ची वीरांगना के रूप में पहचान दिलाई उन्होंने भारतीय युवक युवतियों को अपनी कृतियों के आधार पर तंत्र का संग्राम में स्वयं को समर्पित कर देने के लिए प्रेरित किया है।उनकी "झांसी की रानी" शीर्षक कविता सर्वाधिक लोकप्रिय हैं और उसे जो प्रसिद्धि प्राप्त हुई वह कई बड़े-बड़े महाकाव्य को भी प्राप्त ना हो सकी।अपनी रचनाओं द्वारा इन्होंने महिलाओं के समक्ष नारी के निर्भीक रूप को प्रदर्शित किया जो नारी समाज के लिए अमूल्य निधि है ।
1913 में इनकी पहली कविता प्रयाग से निकलने वाली पत्रिका मर्यादा में प्रकाशित हुई थी उस समय उनकी आयु केवल 9 वर्ष थी। यह कविता सुभद्रा कुंवरी के नाम से छपी। नीम के पेड़ पर यह कविता लिखी गई थी।
कहानियां -
"बिखरे मोती" इनका पहला कहानी संग्रह है इसमें कुल 15 कहानियां है - ग्रामीणा, अनुरोध, अमराई, आहुति, थाती, मछुए की बेटी, एकादशी, कदम के फूल, दृष्टिकोण, परिवर्तन, पापी पेट, मंझिली रानी, होली, भग्नावशेष,। इन कहानियों की भाषा सरल एवं बोलचाल की भाषा है।
सन 1934 में इनका दूसरा कथा संग्रह छपा 'उन्मादिनी' इसका शीर्षक था । इसमें सोने की कंठी नारी हृदय असमंजस अभियुक्त, उन्मादिनी, पवित्र ईर्ष्या , अंगूठी की खोज चढ़ा दिमाग वेश्या की बेटी कुल 9 कहानियां हैं ।
इनका तीसरा व अंतिम कथा संग्रह "सीधे-साधे चित्र" है । इसमें कुल 14 कहानियां संकलित है। रूपा, कैलाशी नानी,बिआल्हा, 2 साथी, प्रोफेसर मित्रा, दुराचारी व मंगला , कल्याणी ।
पारिवारिक ,सामाजिक समस्याएं नारी प्रधान इनकी 8 कहानियों की कथावस्तु है।
राष्ट्रीय विषयों पर आधारित इन की कहानियां है - हींगवाला गुलाब सिंह, तांगेवाला एवं राही । कुल 46 कहानियां और सुभद्रा कुमारी चौहान ने लिखी है।
कविताएं -
उपेक्षा ,इसका रोना, आराधना ,उल्लास, अनोखा दान, कलह करण ,कोयल ,चलते समय, खिलौने वाला जीवन, फूल चिंता, झांसी की रानी ,झांसी की रानी की समाधि, ठुकरा दो या प्यार करो ,झिलमिल तारे ,नीम, तुम ,परिचय, पानी और धूप ,पूछो ,प्रतीक्षा ,प्रथम दर्शन, प्रभु तुम मेरे मन की जानो, फूल के प्रति, विदाई, प्रियतम से, मधुमय प्याली, भ्रम , मेरा गीत, मुरझाया फूल, मेरा जीवन, मेरी टेक, मेरा नया बचपन, कदंब का पेड़, कदंब का पेड़ भाग 2, मेरे पथिक, विदा, विजयी मयूर, वीरों का कैसा हो बसंत, वेदना समर्पण साध, स्वदेश के प्रति, व्याकुल चाह, जलियांवाला बाग में बसंत।
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