मुंशी प्रेमचंद साहित्यिक लेखक परिचय | Munshi Premchand jivan parichay

  

     मुंशी प्रेमचंद साहित्यिक परिचय - 

    विश्व में अनेक महान साहित्यकार समय की रेत पर अपने पद चिन्ह् अंकित करते रहे हैं उनमें से कुछ पद चिन्ह् काल की हवा से धूमिल हो गए हैं किंतु कुछ के हस्ताक्षर आज भी नक्षत्रों में चंद्रमा के समान आलोकित हैं। 

उनमें से सर्वप्रथम हिंदी साहित्य जगत में 'मुंशी प्रेमचंद' का नाम आता है जो कि 'कलम के सिपाही' नाम से प्रसिद्ध हैं ।

जीवन परिचय - मुंशी प्रेमचंद का जन्म उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध नगर वाराणसी जिले से लगभग 6 किलोमीटर दूर लमही गांव में सन् 31 जुलाई 1880  को हुआ था । उनका मूल नाम 'धनपत राय' था । उनके पिताजी ने उनका विवाह 15 वर्ष की अवस्था में ही कर दिया था और स्वयं स्वर्ग सिधार गए । उस समय में नवीं कक्षा के छात्र थे । उनके लिए परिवार को संभालना और साथ ही साथ अपनी पढ़ाई जारी रखना गंभीर समस्या थी । बहुत ही कठिनाई से उन्होंने मैट्रिक कक्षा द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण की । एक अध्यापक के रूप में उन्होंने 19 वर्ष की अवस्था में अपना कैरियर आरंभ किया साथ ही साथ स्वयंपाठी परीक्षार्थी के रूप में बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की ।

उन्होंने एक शिक्षक के रूप में कार्य करते हुए पर्याप्त उन्नति प्राप्त की एवं सन उन्नीस सौ आठ में 'डिप्टी इंस्पेक्टर' बन गए । 

महात्मा गांधी के नेतृत्व में सन 1920 मैं पूरे देश में असहयोग आंदोलन का बिगुल बजा तब उन्होंने 20 वर्ष की सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया । 

इसके बाद साहित्य सेवा ही उनके जीवन का आधार हो गया तथा अपना सारा जीवन लेखन कार्य के प्रति समर्पित कर दिया । 

नवाब राय के नाम से प्रेमचंद उर्दू में लेखन कार्य करते थे । बंगाल के प्रख्यात  उपन्यासकार शरत चंद्र चट्टोपाध्याय ने मुंशी प्रेमचंद्र द्वारा उपन्यास के क्षेत्र में योगदान को देखकर उन्हें उपन्यास सम्राट कहकर संबोधित किया था ।

इन्होंने अनेक पत्रिकाओं जैसे जागरण, हंस,माधुरी आदि का संपादन भी किया ।

भयंकर बीमारी के फल स्वरुप 8 अक्टूबर 1936 को वाराणसी में उनका देहांत हो गया ।

 साहित्यिक कृतियां - प्रेमचंद की शिक्षा दीक्षा उर्दू भाषा में हुई थी । सन उन्नीस सौ एक में इन्होंने अपना लेखन कार्य उर्दू से ही आरंभ किया । कानपुर के जमाना पत्र में उनकी पहली कहानी संसार का सबसे अनमोल रत्न 1960 में प्रकाशित हुई । मुंशी प्रेमचंद का प्रथम कहानी संग्रह 'सोजे वतन' 1908 में प्रकाशित हुआ । सोजे वतन का अर्थ होता है 'देश का दर्द' । देशभक्ति से ओतप्रोत होने के कारण इस पर अंग्रेजी सरकार ने रोक लगा दी एवं लेखक को भी भविष्य में इस तरह का लेखन न करने की चेतावनी दी । इस कारण उन्होंने अपना नाम बदलकर लेखन कार्य शुरू किया । पंच परमेश्वर सन् 1915 हिंदी में प्रकाशित उनकी पहली कहानी थी । इन्होंने अपने प्रसिद्ध उपन्यास 'सेवासदन' की रचना सन 1916 में की । 

   अपने जीवन काल में इन्होंने 400 कहानियां तेरा उपन्यास 3 नाटक अनेक निबंध जीवनी अनुवाद ग्रंथ और बालों को योगी साहित्य का सृजन किया । 

कहानी संग्रह - मानसरोवर के 8 भाग

मुख्य उपन्यास - गोदान, गबन, रंगभूमि, कर्मभूमि ,सेवा-सदन ,निर्मला, प्रेमाश्रम ।

नाटक   -  संग्रामकर्बला ।

पत्रिकाएं - जागरण, हंस, माधुरी ,मर्यादा।

अभिव्यक्ति एवं विचार कौशल - गद्य साहित्य संपत्ति के धनी मुंशी प्रेमचंद ने अपने युग का प्रतिनिधित्व किया ।

समाज सुधार उनकी रचनाओं का मूल स्वर है । गांधीवादी भारत का मूर्त चित्र उनके उपन्यासों नाटकों कहानियों एवं अन्य रचनाओं में अंकित है । उनके समय में साम्यवाद आर्य समाज एवं गांधीवादी विचारधाराओं की प्रधानता थी । इन तीनों का आदर्श स्वरूप उनकी रचनाओं में चित्रित हुआ है । इनका आदर्शवाद यथार्थ के धरातल पर अवलंबित है । समाज के शोषित वर्ग के प्रति उनकी गहरी सहानुभूति रही । यथार्थ और आदर्श का सहज समन्वय इनकी रचनाओं में देखने को मिलता है ।

जिसके फलस्वरूप इनको यथार्थवादी आदर्शोन्मुखी कथाकार कहा जाता है।

भारतीय गांव को प्रेमचंद जी ने गांधीजी की आंखों से देखा था । उनकी आशाओं के केंद्र ग्राम थे। ग्राम सुधार दलित एवं अछूत वर्ग को सम्मान स्त्रियों की समानता हिंदू-मुस्लिम एकता एवं स्वदेशी वस्तुओं के व्यवहार तथा विदेशी का बहिष्कार ही इनकी रचनाओं का मूल स्वर था । भारतीय ग्रस्त जीवन के अनेक चित्र उनकी कहानियों में है ।  बहुत गहरा अनुभव था उनका । समाज के प्रत्येक वर्ग एवं वर्ग के प्रत्येक सदस्य की भलाई बुराई से भली भांति परिचित थे । 

    मुंशी प्रेमचंद ने भाषा को सर्वसाधारण की भाषा बनाया । कथ्य के प्रभाव संप्रेषण से समर्थ पात्रानुरूप सहज सरल भाषा का प्रयोग ही उनकी अभिव्यक्ति का कौशल है। भाषा पर जैसा अधिकार इनका है वैसा किसी और लेखक का नहीं है । इनकी रचनाओं में चरित्र चित्रण तथा नाटकीयता में स्वाभाविक का कारण यही भाषा है । इनकी भाषा में लोकोक्तियों तथा मुहावरों का अति सुंदर प्रयोग हुआ है । 

अभिव्यक्ति की प्रभावशीलता के कारण वे उपन्यास सम्राट महान् कथाकार एवं समाज के कुशल चितेरे कहलाते हैं ।

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