Jaishankar Prasad Biography in Hindi | जयशंकर प्रसाद - कवि

जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा ,सुमित्रानंदन पंत और सूर्यकांत त्रिपाठी निराला हिंदी काव्य साहित्य में छायावाद के चार स्तंभ के रूप में माने जाते हैं । छायावाद ने हिंदी कविता को एक नया आयाम प्रदान किया है । यद्यपि हिंदी खड़ी बोली का आरंभ भारतेंदु युग से हुआ था किंतु हिंदी खड़ी बोली का प्रारंभ द्विवेदी युग से माना जाता है । और द्विवेदी युग में जो खड़ी हिंदी कविताएं लिखी गई वह इतिवृत्तात्मक थी । इतिवृत्तात्मक का अर्थ होता है कि जैसा हमने देखा वैसा ही उसका वर्णन कर दिया , संस्कृत के क्लिस्ट तत्सम शब्दों का  प्रयोग किया गया और बिना किसी लाग लपेट के छंद के रूप में उसको वर्णित कर दिया । 

       जैसा कि हरिऔध जी लिखते हैं - 

बैठी खिन्ना यक दिवस वे गेह में थीं अकेली।

आके आँसू दृग-युगल में थे धरा को भिगोते।।

इसमें केवल तत्सम शब्दों का प्रयोग है । जैसा देखा वैसे का वैसा वर्णन कर दिया । इसमें ना तो कल्पना और ना ही अलंकारों का प्रयोग किया गया है। लेकिन यही कविता जब छायावाद में आती है तो इसमें कल्पना रस माधुर्य अलंकार एवं शब्द शक्ति का प्रयोग बहुत ही सुंदरता से होने लगता है।

  जैसे कि जयशंकर प्रसाद जी की कामायनी उनके काव्य की सिद्धावस्था मानी जाती है। जब वह कामायनी में लिखते हैं कि - 

कौन तुम! संसृति-जलनिधि तीर 

तरंगों से फेंकी मणि एक, 

कर रहे निर्जन का चुपचाप 

प्रभा की धारा से अभिषेक! 

मधुर विश्रांत और एकांत— 

जगत का सुलझा हुआ रहस्य, 

एक करुणामय सुंदर मौन 

और चंचल मन का आलस्य!”

हम यहां पर देखते हैं कि कवि कितना भाव पूर्ण होकर भाव धरा पर कविता की रचना करता है । यद्यपि द्विवेदी युगीन कविता हिंदी खड़ी बोली में रचना प्रारंभ हो गई थी किंतु यह वर्णनात्मक अथवा इतिवृत्तात्मक अर्थात् जैसा देखा वैसा वर्णन कर दिया और नीरस  थी । दिवेदी युग इन कविताओं को पढ़ने में इतना आनंद नहीं आता जितना छायावादी कविताओं को पढ़ने में आता है। चाहे वह महादेवी वर्मा की कविताएं हो या चाहे सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की हों या फिर सुमित्रानंदन पंत की हों और चाहे छायावादी युग के प्रवर्तक जयशंकर प्रसाद की कविताएं हों । 

छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय - 

जयशंकर प्रसाद का जन्म एक प्रतिष्ठित वैश्य साहू परिवार में हुआ था जो कि बहुत बड़े तंबाकू के व्यवसाई थे। उनके पिता मह अर्थात दादाजी का नाम श्री शिवरतन साहू था। जो तंबाकू के एक बहुत बड़े संपन्न व्यापारी थे । इनके पिता का नाम श्री देवी प्रसाद था । 

बाल्यकाल में ही श्री जयशंकर प्रसाद के माता पिता एवं बड़े भाई का देहांत हो जाने के कारण परिवार की संपूर्ण जिम्मेदारी का भार उनके कंधों पर आ गिरी और इन्होंने अपना पारिवारिक व्यवसाय संभाल लिया। विद्यालयी शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाए और इन्होंने घर पर रहकर ही अपना अध्ययन जारी रखा और घर पर ही रह कर हिंदी अंग्रेजी संस्कृत फारसी उर्दू बांग्ला इत्यादि भाषाओं का उन्होंने अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया। अपनी दुकान पर बैठे बैठे जब यह भाव विभोर हो जाते थे जब इनका ह्रदय काव्य भूमि पर उतरता था अबे वही बैठे-बैठे कविताओं की रचना किया करते थे और अपनी दुकान की वही के पन्नों पर कविताएं लिख देते थे । 

जयशंकर प्रसाद जी का जन्म सन 1889 में हुआ था और बहुत ही अल्पायु हुए अपने परिश्रम , घर की जिम्मेदारी तथा राजयक्ष्मा आस्था टीवी के रोग के कारण 15 नवंबर सन् 1937 को 48 वर्ष की अल्पायु में ही इनका देहांत हो गया। 

किंतु इस 48 वर्ष की अल्पायु में हिंदी साहित्य के लिए इन्होंने जितना कुछ प्रदान किया उतना किसी और के बस की बात नहीं है। ऐसा बड़े लोगों के लिए ही संभव होता है जैसे कि भारतेंदु हरिश्चंद्र थे जिन्होंने की 1850 में जन्म लिया और 18 से 50 ईसवी में उनका देहांत हुआ । मात्र 35 वर्ष की अल्पायु में ही अपनी रचनाओं द्वारा हिंदी साहित्य को संपन्न बना दिया । 

जयशंकर प्रसाद ने रीतिकाल की अतिशय श्रृंगारिकता से उबार कर तथा द्विवेदी कालीन इतिवृत्तात्मकता से आगे चलकर उन्होंने कविता को ऐसी भाव भूमि प्रदान की जो रस सौंदर्य की आनंद अवस्था कही जाती है।

प्रकृति को उन्होंने अपने हृदय में देखा , प्रकृति के साथ छायावादी कवियों ने अपना तादात्म्य स्थापित किया । हिंदी साहित्य में कविता को एक नई दिशा प्रदान की जिसके कारण कविता अपने पैरों पर खड़ी हो गई।

* जयशंकर प्रसाद जी का साहित्यिक परिचय -

 द्विवेदी युग से अपने काव्य रचना का प्रारंभ करने वाले महाकवि जयशंकर प्रसाद छायावादी काव्य के जन्मदाता एवं छायावादी युग के प्रवर्तक समझे जाते हैं । इनकी रचना कामायनी एक कालजयी कृति है इसमें छायावादी प्रवृत्तियों एवं विशेषताओं का समावेश हुआ है। प्रसाद छायावाद के सर्वश्रेष्ठ कवि है प्रेम और सौंदर्य इनके काव्य का प्रमुख विषय रहा है किंतु इसमें इनका दृष्टिकोण विशुद्ध मानवतावादी रहा है। इन्होंने अपने काव्य में आध्यात्मिक आनंदवाद की प्रतिष्ठा की है। इनका दृष्टिकोण था कि इच्छा, ज्ञान एवं क्रिया जो कि सत्य के विद्युतीकरण समझाते हैं उन्होंने अपने कामायनी महाकाव्य में लिखा है कि- 

शक्ति के विद्युत कण, जो व्यस्त

विकल बिखरे है, हो निरुपाय;

समन्वय उसका करे समस्त

विजयनी मानवता हो जाय ।

इच्छा ,ज्ञान और क्रिया शक्ति के विद्युत कण समझे जाते हैैं इसलिए इच्छा ज्ञान योग क्रिया का सामंजस्य उच्च स्तरीय मानवता का परिचायक है ।

शंकर प्रसाद ने अपनी कविताओं में सूक्ष्म अनुभूतियों का अपनी कविताओं में चित्रण प्रारंभ किया और हिंदी काव्य जगत में एक नवीन क्रांति उत्पन्न कर दी उनके इसी क्रांति ने एक नए युग का सूत्रपात किया जिसे छायावादी यूके नाम से जाना जाता है इसीलिए विद्वानों द्वारा कभी-कभी इस छायावाद को रहस्यवाद की भी संज्ञा दी जाती है।


* जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएं - 

  जयशंकर प्रसाद जी की जो प्रमुख रचनाएं हैं उसमें सबसे प्रमुख जो काव्य की सिद्धार्थ कही जाती है वह 'कामायनी' है । कामायनी में मनु ,श्रद्धा, इड़ा की कथाएं । 

शंकर प्रसाद जी की दूसरी रचना बहुत प्रसिद्ध हुई वो थी 'आंसू' जो कि एक विरह काव्य है इसके अतिरिक्त 'चित्राधार' ब्रज भाषा में लिखा हुआ काव्य संकलन है । 

उनकी अन्य कविताएं है करुणालय, प्रेम पथिक, कानन कुसुम, महाराणा का महत्व, लहर और उर्वशी प्रमुख कविताएं हैं।

* नाटक - 

 इसी प्रकार जयशंकर प्रसाद न केवल एक कवि थे बल्कि एक उच्च कोटि के लेखक भी थे । इन्होंने नाटकों की बहुतायत रचना की जैसे 'चंद्रगुप्त', स्कंदगुप्त ,ध्रुवस्वामिनी, जन्मेजय का नाग यज्ञ, एक घूंट, अजातशत्रु, राज्यश्री, कामना इनके प्रमुख नाटक है जिसके कारण इन्होंने हिंदी  के गद्य साहित्य को समृद्ध किया ।

*कहानियां - 

जयशंकर प्रसाद ने बहुत सारी कहानियां लिखी । इनकी कहानियां प्रतिध्वनि,  आकाशदीप ,इंद्रजाल, आंधी तथा छाया नामक काव्य संग्रह में संग्रहित हैं ।

* उपन्यास- 

जयशंकर प्रसाद जी ने तीन उपन्यास लिखे- कंकाल, तितली और इरावती। इरावती उपन्यास को वह पूर्ण नहीं कर सके इसको पूरा करने से पहले ही वह स्वर्ग सिधार चुके थे। इस कारण से यह उपन्यास पूरा नहीं हो पाया।

* निबंध संग्रह -जयशंकर प्रसाद जी ने एक निबंध संग्रह भी लिखा किसका नाम है 'काव्य कला तथा अन्य निबंध' ।

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