Differences between Mahadevi Verma and meerabai|महादेवी वर्मा और मीराबाई में अंतर
अपने काव्य में विरह वेदना का मर्मस्पर्शी वर्णन करने के कारण छायावादी कवयित्री को आधुनिक मीरा भी कहा जाता है। मीराबाई एवं महादेवी वर्मा के काव्य में बहुत सी समानताएं हैं परंतु फिर भी दोनों के काव्य में अनेक अंतर है-
1. भाषा शैली का अंतर - मीराबाई का जन्म राजस्थान में होने और वहां पर पली-बढ़ी होने के कारण उनके काव्य में मुख्यतया राजस्थानी भाषा का प्रभाव देखने को मिलता है। साथ ही साथ गुजराती एवं ब्रजभाषा का भी प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।
हरि आप हरो जन री भीर ।
जबकि महादेवी वर्मा के आरंभिक काव्य में बृज भाषा का उपयोग किया और बाद में खड़ी बोली में सृजन होने लगा । उनके काव्य में तत्सम शब्दों का प्रयोग भी हुआ है। भाषा सरल एवं सहज है कहीं कहीं पर सूक्ष्म भावनाओं का चित्रण किया है ।
2 काव्य शैली में अंतर - मीराबाई के काव्य की रचना मुक्तक शैली में हुई है। काव्य में गैयता है । मीराबाई को भावपूर्ण गीत काव्य की जन्मदात्री माना जाता है। महादेवी वर्मा के काव्य में गेयता के साथ-साथ चित्रात्मक शैली का भी प्रयोग हुआ है ।
अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी !
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं बेचारी को। पर वो चीं-चीं कर्राती है घर में तो वो नहीं रहेगी!
कैसे फूटे अंडे जोड़े, किससे यह सब बात कहेगी! अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी?
-- महादेवी वर्मा
3 मीराबाई एवं महादेवी वर्मा के छंद अलंकार में अंतर- मीराबाई के काव्य की रचना छंद एवं अलंकारों की सीमा में बंध कर नहीं हुई है वह सहज रूप से ही उनके काव्य में उद्दीप्त हुए हैं।
4 रस योजना- मीराबाई के काव्य में मुख्यत: श्रृंगार रस के दोनों पक्षों 'संयोग एवं वियोग' का सहजता से हुआ है। इसके अलावा 'शांत रस ' एवं 'भक्ति रस' का भी प्रयोग हुआ है । वही महादेवी वर्मा के काव्य में 'वियोग' श्रृंगार रस की प्रधानता है। 'करुण' रस भी व्यंजित हुआ है।
5 मीराबाई एवं महादेवी वर्मा के काव्य में भाव पक्ष का अंतर - मीराबाई 'भक्तिकाल'के 'सगुण भक्ति' धारा के कवयित्री हैं। श्री कृष्ण की आराधना में जो भावानुभूति अभिव्यक्त करती थीं वही उनकी काव्य रचना थी। मीराबाई का गाना भक्ति कालीन कवियों की तरह पद शैली में रचित है।
वही महादेवी वर्मा आधुनिक काल की छायावादी एवं रहस्यवादी कवयित्री हैं। उन्होंने अपने विरह एवं वेदना को रहस्यवादी तरीके से वर्णन किया है ।
1. भाषा शैली का अंतर - मीराबाई का जन्म राजस्थान में होने और वहां पर पली-बढ़ी होने के कारण उनके काव्य में मुख्यतया राजस्थानी भाषा का प्रभाव देखने को मिलता है। साथ ही साथ गुजराती एवं ब्रजभाषा का भी प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।
हरि आप हरो जन री भीर ।
द्रोपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर ।
भगत कारण रूप नरहरि, धरयो आप सरीर । बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुञ्जर पीर |
दासी मीराँ लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर ।।
जबकि महादेवी वर्मा के आरंभिक काव्य में बृज भाषा का उपयोग किया और बाद में खड़ी बोली में सृजन होने लगा । उनके काव्य में तत्सम शब्दों का प्रयोग भी हुआ है। भाषा सरल एवं सहज है कहीं कहीं पर सूक्ष्म भावनाओं का चित्रण किया है ।
2 काव्य शैली में अंतर - मीराबाई के काव्य की रचना मुक्तक शैली में हुई है। काव्य में गैयता है । मीराबाई को भावपूर्ण गीत काव्य की जन्मदात्री माना जाता है। महादेवी वर्मा के काव्य में गेयता के साथ-साथ चित्रात्मक शैली का भी प्रयोग हुआ है ।
अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी !
आँधी आई जोर शोर से, डालें टूटी हैं झकोर से।
उड़ा घोंसला अंडे फूटे, किससे दुख की बात कहेगी!
अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी? घर में पेड़ कहाँ से लाएँ, कैसे यह घोंसला बनाएँ!
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं बेचारी को। पर वो चीं-चीं कर्राती है घर में तो वो नहीं रहेगी!
कैसे फूटे अंडे जोड़े, किससे यह सब बात कहेगी! अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी?
-- महादेवी वर्मा
3 मीराबाई एवं महादेवी वर्मा के छंद अलंकार में अंतर- मीराबाई के काव्य की रचना छंद एवं अलंकारों की सीमा में बंध कर नहीं हुई है वह सहज रूप से ही उनके काव्य में उद्दीप्त हुए हैं।
अनुप्रास रूपक, उत्प्रेक्षा ,उपमा आदि अलंकारों का सहज रूप उनके काव्य में मिलता है । महादेवी वर्मा ने अपने काव्य की रचना 'मात्रिक' छंद बद्ध होकर अलंकारों से सजाकर किया है। रोला और हरिगीतिका दो का प्रमुख रूप से प्रयोग किया है।
महादेवी वर्मा ने विशेष रूप से 'रूपक' अलंकार का प्रयोग किया है किंतु उत्प्रेक्षा, उपमा, अनुप्रास मानवीकरण आदि अलंकारों का प्रयोग भी किया है।
4 रस योजना- मीराबाई के काव्य में मुख्यत: श्रृंगार रस के दोनों पक्षों 'संयोग एवं वियोग' का सहजता से हुआ है। इसके अलावा 'शांत रस ' एवं 'भक्ति रस' का भी प्रयोग हुआ है । वही महादेवी वर्मा के काव्य में 'वियोग' श्रृंगार रस की प्रधानता है। 'करुण' रस भी व्यंजित हुआ है।
5 मीराबाई एवं महादेवी वर्मा के काव्य में भाव पक्ष का अंतर - मीराबाई 'भक्तिकाल'के 'सगुण भक्ति' धारा के कवयित्री हैं। श्री कृष्ण की आराधना में जो भावानुभूति अभिव्यक्त करती थीं वही उनकी काव्य रचना थी। मीराबाई का गाना भक्ति कालीन कवियों की तरह पद शैली में रचित है।
वही महादेवी वर्मा आधुनिक काल की छायावादी एवं रहस्यवादी कवयित्री हैं। उन्होंने अपने विरह एवं वेदना को रहस्यवादी तरीके से वर्णन किया है ।
प्रकृति में मानवीय संवेदनाएं एवं अनुभूतियों का आध्यात्मिक अनुभव ही उनके काव्य की अभिव्यक्ति है।
इनका काव्य संगीतात्मकता के साथ भावना प्रधान भी है। इनके काव्य की भावना अज्ञात प्रियतम के प्रति विरह एवं वेदना की रही है।
मीराबाई एवं महादेवी वर्मा के आराध्य में अंतर -
मीराबाई एवं महादेवी वर्मा के आराध्य में अंतर -
मीराबाई के आराध्य एकमात्र श्री कृष्ण है
मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो ना कोई
जाके सर मोर-मुकुट, मेरो पति सोई
कोई कहे कारो,कोई कहे गोरो
लियो है अँखियाँ खोल
कोई कहे हलको,कोई कहे भारो
लियो है तराजू तौल
मेरे तो गिरधर गोपाल ।।
कहीं-कहीं रहस्यात्मकता भी आई है किंतु उनका अधिकतम काव्य श्री कृष्ण के इर्द-गिर्द ही घूमता है।
ंंवहीं महादेवी वर्मा के काव्य में अपने रहस्यमयी प्रियतम के प्रति अप्रतिम प्रेम में विरह वेदना का वर्णन हुआ है।
मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो ना कोई
जाके सर मोर-मुकुट, मेरो पति सोई
कोई कहे कारो,कोई कहे गोरो
लियो है अँखियाँ खोल
कोई कहे हलको,कोई कहे भारो
लियो है तराजू तौल
मेरे तो गिरधर गोपाल ।।
कहीं-कहीं रहस्यात्मकता भी आई है किंतु उनका अधिकतम काव्य श्री कृष्ण के इर्द-गिर्द ही घूमता है।
ंंवहीं महादेवी वर्मा के काव्य में अपने रहस्यमयी प्रियतम के प्रति अप्रतिम प्रेम में विरह वेदना का वर्णन हुआ है।
उन्होंने अपने काव्य में ससीम और असीम का लौकिक और अलौकिक का मिलन दर्शाया है।
इनकी कविताओं में रहस्यवाद सरलता से खोजा जा सकता है।
अध्यात्म के भावनात्मक स्तर पर आत्मा और परमात्मा के मिलन का वर्णन ही रहस्यवाद कहलाता है।
महादेवी वर्मा ने जिस प्रिय को लक्ष्य कर अपनी कविताएं या गीत रचे हैं वह लौकिक ना होकर अलौकिक है।
कौन तुम मेरे हृदय में?
कौन मेरी कसक में नित
मधुरता भरता अलक्षित?
कौन प्यासे लोचनों में
घुमड़ घिर झरता अपरिचित?
स्वर्ण स्वप्नों का चितेरा
नींद के सूने निलय में!
कौन तुम मेरे हृदय में?
महादेवी वर्मा
छायावादी कवयित्री होने के कारण प्रकृति का सूक्ष्मता से मानवीकरण किया है। उनके काव्य की वेदना संसार को एक धागे में बांधकर रखने की क्षमता रखता है ।
कौन तुम मेरे हृदय में?
कौन मेरी कसक में नित
मधुरता भरता अलक्षित?
कौन प्यासे लोचनों में
घुमड़ घिर झरता अपरिचित?
स्वर्ण स्वप्नों का चितेरा
नींद के सूने निलय में!
कौन तुम मेरे हृदय में?
महादेवी वर्मा
छायावादी कवयित्री होने के कारण प्रकृति का सूक्ष्मता से मानवीकरण किया है। उनके काव्य की वेदना संसार को एक धागे में बांधकर रखने की क्षमता रखता है ।