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Showing posts from January, 2021

हिंदुस्तान है प्यारा कविता | Hindustan he pyara Kavita

  हिंदुस्तान की मिट्टी मेरी जिस पर दिल जान है न्योछावर सब दुश्मन कांपे पर देख कर इंडियन आर्मी की पावर इस देश पर करते सब अभिमान झुकते सब देश देखकर चीन , श्रीलंका हो या पाकिस्तान कोरोना के खिलाफ देखकर भारतीय जनता की तैयारी पड़ी है चीन जैसे दुश्मनों पर मार भारी विभिन्नता में एकता वाला देश हमारा रंग बिरंगा हिंदुस्तान है प्यारा ।   आजादी की लड़ाई हिंदी कविता poem written by super CM Copyright © 2020  All Right Reseved

दीक्षा कहानी | Hindi kahani deeksha

  एक बार एक गुरुकुल में गुरुदेव ने अपने शिष्यों की शिक्षा पूरी की एवं उनकी दीक्षा का समय आ गया। गुरुदेव ने सभी शिष्यों की दीक्षा भी ले ली किंतु उनके दो प्रिय शिष्य जो कि सर्वश्रेष्ठ थे उनकी दीक्षा लेनी बाकी रह गई थी।  गुरुदेव ने उनको एक एक लोटा देकर कहा कि इसे अच्छी तरह से मांजगर साफ कर और साफ स्वच्छ जल भर कर लाओ । दोनों शिष्यों ने अपने गुरु की आज्ञा का पालन किया। एवं लोटे में जल भरने के लिए नदी के किनारे चल पड़े । वहां पहुंचकर दोनों ने लोटा मांजना शुरू किया । गुरुदेव का प्रथम शिष्य जो कि एक राजकुमार था उसने लौटे को अंदर सेक्स केवल एक बार हल्का सा साफ किया और बाहर से रगड़ रगड़ कर मांजने लगा उसको इतना रगड़ा बाहर से कि वह चमकने लगा । किंतु द्वितीय शिष्य जो था वह एक गरीब किसान पुत्र था उसने लोटे को अंदर की तरफ से अधिक रगड़ रगड़ कर महाजना शुरू किया एवं उसकी सफाई अच्छी तरह से कर दी और बाहर से भी की । किसान पुत्र को ऐसा करते देख राजकुमार उस पर हंसने लगा और उसने कहा कि "बाहर से तो सभी देखते हैं अंदर से लौटा कौन देखता है इसलिए तुम मूर्ख हो जो तुम अंदर से इतना सफाई कर रहे हो ।" किसान ...

मीरांबाई एक साहित्यिक परिचय Meerabai jeevan prichay

जीवन परिचय - भक्त शिरोमणि मीराबाई   भक्ति कालीन कृष्ण भक्ति शाखा की सहज,सरस विरह- वेदना की अमर गायिका एवं राधिका हैं ।  मरू मंदाकिनी मीराबाई का जन्म 1498 ईस्वी में मेड़ता के राठौड़ वंश के राव दूदा     के पुत्र रतन सिंह के यहां ग्राम 'कुड़की' में हुआ था । इनकी माता का नाम 'वीरकुमारी' था ।  ऐसी लोक मान्यता है कि बचपन से ही मीराबाई का मन कृष्ण भक्ति में लीन हो गया था । संत  रैदास इनके गुरु थे । मीरांबाई का विवाह सन 1519 में महाराणा सांगा के पुत्र 'भोजराज' के साथ हुआ । जिनका देहांत विवाह के 7 वर्ष उपरांत अल्पायु में ही हो गया ।  महाराणा सांगा और अपने पिता रतन सिंह की मृत्यु के बाद मीराबाई को संसार से विरक्ति सी हो गई और वे अपना संपूर्ण समय कृष्ण भक्ति में लीन होकर बिताने लगीं ।   राणा विक्रमादित्य ने , जोकि मेवाड़ के नए शासक थे मीराबाई को अनेकों प्रकार से कष्ट दिए । उनका अधिकांश समय   भजन एवं सत्संग में व्यतीत करना राजकुल मर्यादा के विपरीत मानकर राणा ने मीरा की जीवन लीला समाप्त करने के अनेकों प्रयास के अंतः साक्ष्य मिलते हैं । फिर भी उन्होंन...

Makar Sankranti Kavita | मकर संक्रांति पर कविता

  makar sankranti kavita किसने कहा पतंग उड़ाना आसान है,    पतंग उड़ाना होता है कठिन । रंग बिरंगी पतंगों से भरा आसमान है, आज सूर्योदय से पूर्व उठकर ।  नहा - धोकर तैयार होकर, लें चरखी- मांझा, रंग-बिरंगी पतंग । साथ में खाने- पीने का भी सामान है, गए जैसे ही छत पर, किसी ने कहा नीचे आओ, हम गए डर ! क्योंकि आवाज थी बड़ी भयंकर  । पहले पापा ने बोला बीमार पड़ जाओगे, फिर बाबा ने बोला नीचे गिर जाओगे, एक-एक कर सब ने डांट लगाई, वह चाहे मम्मी बुआ ताऊ हो या ताई। डांट कर लग गए सब काम पे,  मौका पाकर चल गए छत पे, बच्चे थे हम  ****  गांम  के, किसने कहा पतंग उड़ाना आसान है ? पतंग उड़ाना होता है कठिन । आज रंग बिरंगी पतंगों से भरा आसमान है। पहले पतंग में ताना डाला, चरखे से धागा निकालकर, छुट्टी दे जनाब  पेड़ आ गया बीच में, मानो हो जैसे हड्डी में कबाब । थोड़ी देर ठहर का हवा ने रुख मोड़ा , तभी कोरव ने अपने दांतो से पतंग को तोड़ा । फिर दादी ने खाने के लिए आवाज लगाई  हमने बड़ी मुश्किल से पतंग चढ़ाई ‌। हमने मांझा नहीं खरीदा, सादा धागा वह भी उड़ाया संभल कर निर्दो...

मुंशी प्रेमचंद साहित्यिक लेखक परिचय | Munshi Premchand jivan parichay

          मुंशी प्रेमचंद साहित्यिक परिचय -      विश्व में अनेक महान साहित्यकार समय की रेत पर अपने पद चिन्ह् अंकित करते रहे हैं उनमें से कुछ पद चिन्ह् काल की हवा से धूमिल हो गए हैं किंतु कुछ के हस्ताक्षर आज भी नक्षत्रों में  चंद्रमा  के समान आलोकित हैं।  उनमें से सर्वप्रथम हिंदी साहित्य जगत में 'मुंशी प्रेमचंद' का नाम आता है जो कि 'कलम के सिपाही' नाम से प्रसिद्ध हैं । जीवन परिचय - मुंशी प्रेमचंद का जन्म उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध नगर वाराणसी जिले से लगभग 6 किलोमीटर दूर लमही गांव में सन् 31 जुलाई 1880  को हुआ था । उनका मूल नाम 'धनपत राय' था । उनके पिताजी ने उनका विवाह 15 वर्ष की अवस्था में ही कर दिया था और स्वयं स्वर्ग सिधार गए । उस समय में नवीं कक्षा के छात्र थे । उनके लिए परिवार को संभालना और साथ ही साथ अपनी पढ़ाई जारी रखना गंभीर समस्या थी । बहुत ही कठिनाई से उन्होंने मैट्रिक कक्षा द्वितीय श्रेणी से उत्तीर्ण की । एक अध्यापक के रूप में उन्होंने 19 वर्ष की अवस्था में अपना कैरियर आरंभ किया साथ ही साथ स्वयंपाठी परीक्षार्थी के रू...

सप्रसंग व्याख्या तथा विशेष कैसे लिखें | Saprasang Vyakhya tatha Vishesh kese likhen

  How to write sandarbh prasang in Hindi poems ? संदर्भ तथा प्रसंग -      1 . संदर्भ का अर्थ होता है किसी काव्य या रचना के गद्य या पद्य भाग की बनावट कैसी होती है संदर्भ में इसका उल्लेख किया जाता है।      2. वह प्रसंग, विषय आदि का उल्लेख करता है, जैसे कि किसी एक गद्य या पद्य भाग की व्याख्या करने पर करने से पहले उसको किस पाठ से लिया गया है, उसके लेखक या कवि कौन हैं, का उल्लेख किया जाता है।      3. वह परिस्थिति जिसमें कोई घटना घटी हो या वह किस घटना से संबंधित है का विवरण दिया गया है।     4. किसी पुस्तक या ग्रंथ में उल्लिखित वे बातें जिनका उपयोग जानकारी बढ़ाने के लिए किया गया है, या फिर वह गद्य / पद्य भाग जिस पर किसी लेखक या कवि द्वारा रचित रचना से लिया गया हो उसका उल्लेख किया जाता है। प्रसंग -  1.कथन - कहा हुआ सार्थक वाक्य, घटित होने वाली या प्रस्तुत अवस्था, स्थिति, चीजों का पारस्परिक संबंध।    2. विषय -  अवसर, घटना, मौका आदि का वर्णन करना।  3. संभावित क्षमता - उत्तम, उत्कृष्ट, लगाव, रूढ़िवादि संबंध का ...

सूरदास जीवन परिचय | Surdas jeevan prichay

कवि परिचय -  भक्ति काल की कृष्ण भक्ति के सगुण भक्ति शाखा के प्रमुख कवि 'सूरदास' हैं। इनका जन्म संम्वत 1540 में हुआ था। माना जाता है कि इनका जन्म आगरा और मथुरा के बीच स्थित 'रूनुकता' ग्राम में हुआ था। सप्रसंग व्याख्या - 1👉 surdas-ke-pad-1explanation in Enlish| सूरदास के पद की सप्रसंग व्याख्या  हिंदी में. कुछ विद्वानों का मत है कि दिल्ली के निकट 'सीही' गांव इनका जन्म स्थान है। उनके पिता का नाम 'रामदास' था। भक्तमाल और वार्ता साहित्य के आधार पर इनको सारस्वत ब्राह्मण माना जाता है किंतु ' साहित्य लहरी ' में एक पद है जिससे यह पृथ्वीराज के राज कवि 'चंद्रवर बाण' के वंशज ब्रह्मभट्ट मालूम होते हैं। इस  पद से उनके बारे में कई बातों का ज्ञान होता है। सूरदास जी अंधे थे वे जन्म से अंधे थे या बाद में अंधे हुए यह विवाद का विषय है। विद्वान इस विषय में एकमत नहीं है।  किंतु सूरदास ने अपने साहित्य में कृष्ण की बाल लीलाओं का जिस प्रकार वर्णन किया बालकृष्ण के जिस प्रकार  चित्र उतारे हैं प्रकृति का भी इतना सुंदर चित्रण सूरदास जी ने किया है यह मानने में संदेह ह...